तीर्थंकर महावीर स्वामी जी भगवान महावीर स्वामी जी का सच्चा संदेश पूरे विश्व में फैले और जैन समाज में कुछ फैली कुरीतियों पर रोक लगे.जिससे संपूर्ण संसार जगत में द्वेष भावना खत्म होकर प्यार-प्रेम और भाईचारा कायम हो."जैन" कोई जाति नहीं,धर्म है.जैन-धर्म के सिध्दांतों में जो दृढ विश्वास रखता है और उनके अनुसार आचरण करता है, वही सच्चा जैन कहलाता है.इसको कोई भी अपनी स्वेच्छा से अपना सकता है. जैन का जीवन कैसा होता है वहीं आदर्श जीवन है वही सच्चा जैन-जीवन है, जिसके कण-कण और क्षण-क्षण में धर्म की साधना झलकती हो. धर्ममय जीवन के आदर्शों का यह भव्य चित्र प्रस्तुत है-'जैन जीवन' में.1. जैन भूख से कम खाता है. जैन बहुत कम बोलता है. जैन व्यर्थ नहीं हंसता है. जैन बडो की आज्ञा मानता है. जैन सदा उद्यमशील रहता है.2. जैन गरीबों से नहीं शर्माता. जैन वैभव पाकर नहीं अकड़ता. जैन किसी पर नहीं झुंझलाता. जैन किसी से छल-कपट नहीं करता. जैन सत्य के समर्थन में किसी से नहीं डरता.3. जैन हृदय से उदार होता है. जैन हित-मित मधुर बोलता है. जैन संकट-काल में हँसता है. जैन अभ्युदय में भी नम्र रहता है.4. अज्ञानी को जीवन निर्माणार्थ ज्ञान देना मानवता है. ज्ञान के साथ विद्यालय आदि खोलना मानवता है.5. भूखे प्यासे को संतुष्ट करना मानवता है. भूले हुए को मार्ग बताना मानवता है. जैन मानवता का मंगल प्रतीक है.6. जहाँ विवेक होता है, वहाँ प्रमाद नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ लोभ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ स्वार्थ नहीं होता. जहाँ विवेक होता है, वहाँ अज्ञान नहीं होता.जैन विवेक का आराधक होता है. 7. प्रतिदिन विचार करो कि मन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि वचन से क्या क्या दोष हुए हैं. प्रतिदिन विचार करो कि शरीर से क्या क्या दोष हुए हैं.8. सुख का मूल धर्म है. धर्म का मूल दया है. दया का मूल विवेक है. विवेक से उठो. विवेक से चलो. विवेक से बोलो. विवेक से खाओ. विवेक से सब काम करो.9. पहनने-ओढने में मर्यादा रखो. घूमने-फिरने में मर्यादा रखो. सोने-बैठने में मर्यादा रखो. बड़े-छोटो की मर्यादा रखो. 10. मन से दूसरों का भला चाहना परोपकार है. वचन से दूसरों को हित-शिक्षा देना परोपकार है. शरीर से दूसरों की सहायता करना परोपकार है. धन से किसी का दुःख दूर करना परोपकार है. भूखे प्यासे को संतुष्ट करना परोपकार है. भूले को मार्ग बताना परोपकार है. अज्ञानी को ज्ञान देना या दिलवाना परोपकार है. ज्ञान के साधन विद्यालय आदि खोलना परोपकार है. लोक-हित के कार्यों में सहर्ष सहयोग देना परोपकार है. 11. बिना परोपकार के जीवन निरर्थक है. बिना परोपकार के दिन निरर्थक है. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ मनुष्यत्व नहीं. जहाँ परोपकार नहीं वहाँ धर्म नहीं. परोपकार की जड़ कोमल हृदय है. परोपकार का फल विश्व-अभय है. परोपकार कल करना हो तो आज करो. परोपकार आज करना हो तो अब करो .12. बिना धन के भी परोपकार हो सकता है. किन्तु बिना मन के नहीं हो सकता.13. धन का मोह परोपकार हीं होने देता. शरीर का मोह परोपकार नहीं होने देता.14. परोपकार करने के लिए जो धनी होने की राह देखे वो मूर्ख है. बदले कि आशा से जो परोपकार करे वो मूर्ख है. बिना स्नेह और प्रेम के जो परोपकार करे वो मूर्ख है. 15. भोजन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए भोजन है. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. धन से जितना अधिक मोह उतना ही पतन. धन से जितना कम मोह उतना ही उत्थान."
No comments:
Post a Comment